रात गुमसुम हैं मगर चाँद खामोश नहीं !
कैसे कह दूँ फिर आज मुझे होश नहीं !
ऐसे डूबा तेरी आँखों के गहराई में आज !
हाथ में जाम हैं,मगर पिने का होश नहीं !!
देख तेरा दिया हुआ गुलाब कैसा रँग लाया है !
जो सज न सका तेरी डोली में आज मेरे जनाजे पे काम आया है !!
हमने इलाजे-ज़ख़्मे-दिल तो ढूँढ़ लिया, लेकिन !
गहरे ज़ख़्मों को भरने में वक़्त तो लगता है !!