तेरी चाहत तो मुकद्दर है मिले ना मिले !
पर राहत जरुर मीलती है तुम्हे अपना सोचकर !!
काश किताबो में भी ये ज्ञान होता !
के दर्द इ इश्क़ के लिए भी कोई इंतज़ाम होता !!
क्या ख़ाक तरक़्क़ी की आज की दुनिया ने !
मरीज़-ए-इश्क़ तो आज भी लाइलाज बैठे हैं !!
कुछ कहानियाँ अक्सर अधूरी रह जाती है !
कभी पन्ने कम पड़ जाते है,कभी स्याही सुख जाती है !!