Hindi Kavita
Desh Bhakti Kavita
देखो बच्चों यह झंडा प्यारा तीनों रंगों का मेल सारा।
रहे सदा यह झंडा ऊंचा आकाश को रहे यह छूता।
सदा करो तुम इसका मान कभी ना करना इसका अपना अपमान।
झंडा ही है देश की शान बना रहे है यह सदा महान।

Love Kavita
मैं अपना इश्क़ अपना इश्क़ 1990 वाला चाहता हूँ
टेस्ट कॉल से दूर ख़तों पर रहना चाहता हूँ
ये बाबू शोना छोड़के उसे प्रेमिका कहना चाहता हूँ
जब मिले हम अचानक से तो उसकी खुशी देखना चाहता हूँ
जब आये सुखाने कपड़े छत पर तो चोरी चोरी मिलना चाहता हूँ
जो पापा और भाई के आने से डरती हो ऐसी मेहबूबा चाहता हूँ
हाँ मैं आज भी मोहब्बत पुराने जमाने वाला चाहता हूँ

Life Kavita
राह न अपनी छोड़ो तुम फूल बिछे हों या कांटे हों चाहे जो विपदायें आयें मुख को जरा न मोड़ो तुम साथ रहें या रहें न साथी हिम्मत मगर न छोड़ णुम नहीं कृपा की भिक्छा मांगो कर न दीन बन जोड़ो तुम बस ईश्वर पर रखो भरोसा पाठ प्रेम का पढ़े चलो जब तक जान बनी हो तन में तब तक आगे बढ़े चलो

Kavita Kosh
तुझे क्या पता तेरे इन्तजार में हमने हर लम्हां कैसे गुजारा हैं एक दो बार नही दिन में हजारों दफ़ा तेरी तस्वीर को निहारा हैं

Maa Par Kavita
जरा सी चोट लगे तो आंसू बहा देती है सुकून भरी गोद में हमको सुला देती है हम करते हैं खता तो चुटकी में भुला देती है होते हैं खफा हम तो दुनिया को भुला देती है मत गुस्ताखी करना उस माँ से जैद जो अपने बच्चों की चाह में अपने आप को भुला देती है

Sath Dena Hai To
Ye Zindagi Bhi Ajeeb Hai
यें ज़िन्दगी भी अजीब सी हैं
हर मोड़ पर अपना रंग बदल देती हैं
कोई अपने बेगाने हो जाते हैं
तो कोई पराया अपना हो जाता हैं
यें ज़िन्दगी भी अजीब सी हैं
हर मोड़ पर कुछ नया सिखाती हैं
कभी खुशिया भर -भर के आती है
तो कभी-कभी दुःख के
बादल हर रोज बरसते हैं
यें ज़िन्दगी भी अजीब सी हैं
हर मोड़ पर एक नया मुकाम बनाती हैं
इस ज़िन्दगी से हर रोज
किसी न किसी को
शिकायत होती है तो कोई इसकी
प्रशंसा करता हैं
यें ज़िन्दगी कभी खामोश रहती हैं
और कभी-कभी बिन कहे
कुछ कह जाती हैं
यें ज़िन्दगी दुश्मनों के साथ रहकर
अपनों को धोका दे जाती हैं
यें ज़िन्दगी भी अजीब सी हैं
हर मोड़ पर एक नया रंग दे जाती हैं
कविता कोश
Aahista Chal Ae Zindagi
आहिस्ता चल जिंदगीअभी
कई कर्ज चुकाना बाकी है
कुछ दर्द मिटाना बाकी है
कुछ फर्ज निभाना बाकी है
रफ़्तार में तेरे चलने से
कुछ रूठ गए कुछ छूट गए
रूठों को मनाना बाकी है
रोतों को हँसाना बाकी है
कुछ रिश्ते बनकर टूट गए
कुछ जुड़ते -जुड़ते छूट गए
उन टूटे -छूटे रिश्तों के
जख्मों को मिटाना बाकी है
कुछ हसरतें अभी अधूरी हैं
कुछ काम भी और जरूरी हैं
जीवन की उलझ पहेली को
पूरा सुलझाना बाकी है
जब साँसों को थम जाना है
फिर क्या खोना क्या पाना है
पर मन के जिद्दी बच्चे को
यह बात बताना बाकी है
आहिस्ता चल जिंदगी अभी
कई कर्ज चुकाना बाकी है
कुछ दर्द मिटाना बाकी है
कुछ फर्ज निभाना बाकी है
---------धन्यवाद --------
कविता कोश
Dastan Apni Kavita Kosh
मैं भी लिखूँगाी किसी रोज़ दास्तान अपनी
मैं भी किसी रोज़ तुझपे इक ग़ज़ल लिखूँगी
लिखूँगा कोई शख्स तो शहजादा-सा लिखूँगी
ग़र गुलों का ज़िक्र आया तो कमल लिखूँगी
बात ग़र इश्क़ की होगी तो बे-इन्तहा है तू
ज़िक्र ग़र तारीख का होगा तो अज़ल लिखूँगी
मैं लिखूँगी तेरी रातों की मासूम-सी नींद
और अपनी बेचैन करवटों की नक़ल लिखूँगी
हाँ ज़रा मुश्किल है तुझे लफ़्ज़ों में बयां करना
फिर भी यकीन मानो जान मुकम्मल तुझे ही अपनी जान लिखुगी
ये जानती हूँ मै कि तुझे झूठ से नफरत है
इसलिए जो भी लिखूँगी सब असल लिखूँगी
कविता कोश
Jis Roz
जिस रोज पैदा होते हैं हम
उस रोज बहुत खुशियां मनाई जाती है
बचपन से लेकर बुढ़ापे तक
सपनो की एक दुनिया सजाई जाती है
खुशी और ग़म की आँखों से
ज़िन्दगी की तस्वीर दिखाई जाती है
जिस रोज मरते हैं हम
उस रोज हमारी खूबियां बताई जाती है ।
कविता कोश
Mere Intezar Me Kavita Kosh
वो दिन भी आयेगा मेरे इंतज़ार में
जब तुम खडी होगी नज़रें बार बार
रास्ते पर उठ रही होंगी घड़ी की सुईयां
अटकी हुयी लगेंगी दिल की धडकनें
बढ़ रही होंगी चेहरे पर पसीना
माथे पर सलवटें होंगी तुम्हें उन हालात का
अहसास होने लगेगा तुम्हारे इंतज़ार में
जो मैंने सहा होगा प्रीत से मिलन की आस
कुछ ऐसी ही होती है जिसने सही
उसे ही महसूस होती है
कविता कोश
Kya Hoga Kavita Kosh
नज़र फ़रेब-ए-कज़ा खा गई तो क्या होगा;
हयात मौत से टकरा गई तो क्या होगा;
नई सहर के बहुत लोग मुंतज़िर हैं मगर;
नई सहर भी कजला गई तो क्या होगा;
न रहनुमाओं की मजलिस में ले चलो मुझको;
मैं बे-अदब हूँ हँसी आ गई तो क्या होगा;
ग़म-ए-हयात से बेशक़ है ख़ुदकुशी आसाँ;
मगर जो मौत भी शर्मा गई तो क्या होगा;
शबाब-ए-लाला-ओ-गुल को पुकारनेवालों;
ख़िज़ाँ-सिरिश्त बहार आ गई तो क्या होगा;
ख़ुशी छीनी है तो ग़म का भी ऐतमाद न कर;
जो रूह ग़म से भी उकता गई तो क्या होगा।
कविता कोश
Ek Shabd Hai
एक शब्द है ( मोहब्बत )
इसे कर के देखो तुम तड़प ना जाओ तो कहना
एक शब्द है ( मुकद्दर )
इससे लड़कर देखो तुम हार ना जाओ तो कहना
एक शब्द है ( वफा )
जमाने में नहीं मिलती कहीं ढूंढ पाओ तो कहना
एक शब्द है ( आँसू )
दिल में छुपा कर रखो तुम्हारी आँखों से ना निकल जाए तो कहना
एक शब्द है ( जुदाई )
इसे सह कर तो देखो तुम टूट कर बिखर ना जाओ तो कहना
एक शब्द है ( ईश्वर )
इसे पुकार कर तो देखो सब कुछ पा ना लो तो कहना
कविता कोश
Tera Dedar Karoo
तू सामने रहे मेरे मै तेरा दीदार करू
सब कुछ भुला के सिर्फ तुझे ही प्यार करू
तेरी जुल्फों के साये मे जिन्दगी मिली
तेरी आँखों मे डूब केख़ुशी मिली
तुझ से भी बढ़ कर तुझ पे ऐतबार करू
तुम न थे दिल मे कोई अरमान न था
इस नाकाम जिन्दगी मेकही मुकाम न था
सफ़र के हर मोड़ पेतेरा इन्तेजार करू
वादा करो मुझ सेकभी दूर न जाओगे
मेरे दिल को ख़ुशी देकर फिर न रुलाओगे
मेरे सब कुछ तुम हो तुझ पे जान निसार करू
कविता कोश
Kavita Kosh In Hindi Smundar Sare
समंदर सारे शराब होते तो सोचो कितना बवाल होता
हक़ीक़त सारे ख़्वाब होते तो सोचो कितना बवाल होता
किसी के दिल में क्या छुपा है ये बस ख़ुदा ही जानता है
दिल अगर बेनक़ाब होते तो सोचो कितना बवाल होता
थी ख़ामोशी हमारी फितरत में तभी तो बरसो निभ गयी लोगो से
अगर मुँह में हमारे जवाब होते तो सोचो कितना बवाल होता
हम तो अच्छे थे पर लोगो की नज़र में सदा बुरे ही रहे
कहीं हम सच में ख़राब होते तो सोचो कितना बवाल होता
कविता कोश
Kavita Kosh
बेटी बनकर आई हु माँ-बाप के जीवन में
बसेरा होगा कल मेरा किसी और के आँगन में
क्यों ये रीत "रब" ने बनाई होगी
कहते है आज नहीं तो कल तू पराई होगी
देके जनम पाल-पोसकर जिसने हमें बड़ा किया
और वक़्त आया तो उन्ही हाथो ने हमें विदा किया
टूट के बिखर जाती हे हमारी ज़िन्दगी वही
पर फिर भी उस बंधन में प्यार मिले ज़रूरी तो नहीं
क्यों रिश्ता हमारा इतना अजीब होता है
क्या बस यही बेटियो का नसीब होता है
कविता कोश
Kavita Kosh Wo Bhi Kya Zamana Tha
एक बचपन का जमाना था
जिसमें खुशियों का खजाना था
चाहत चाँद को पाने की थी
पर दिल तितली का दीवाना था
खबर ना थी कुछ सुबह की
ना शाम का ठिकाना था
थक हार के आना स्कूल से
पर खेलने भी जाना था
परियों का फसाना था
बारिश में कागज की कश्ती थी
हर मौसम सुहाना था
हर खेल में साथी थे
हर रिश्ता निभाना था
गम की जुबां ना होती थी
ना जख्मों का पैमाना था
रोने की वजह ना थी
ना हँसने का बहाना था
क्यूँ हो गये हम इतने बड़े
इससे अच्छा तो वो
"बचपन का जमाना था
कविता कोश

Rahat Indori Kavita Kosh
मोम के पास कभी आग को लाकर देखूँ
सोचता हूँ के तुझे हाथ लगा कर देखूँ
कभी चुपके से चला आऊँ तेरी खिलवत में
और तुझे तेरी निगाहों से बचा कर देखूँ
मैने देखा है ज़माने को शराबें पी कर
दम निकल जाये अगर होश में आकर देखूँ
दिल का मंदिर बड़ा वीरान नज़र आता है
सोचता हूँ तेरी तस्वीर लगा कर देखूँ
तेरे बारे में सुना ये है के तू सूरज है
मैं ज़रा देर तेरे साये में आ कर देखूँ
याद आता है के पहले भी कई बार यूं ही
मैने सोचा था के मैं तुझको भुला कर देखूँ
कविता कोश
Poem Ocean
दर्द-ए-बुज़ुर्ग बाप
दो दिन से घर पर पूछने कोई नहीं आया
बीमार तूने खाना भी खाया नहीं खाया
भेजी थी ख़बर बेटे कोहैं आखरी साँसे
बीबी की कैद से वो निकल ही नहीं पाया
देखी थी खत की राहमुकद्दर में कहाँ खत
शायद है व्यस्त होगातो लिख नहीं पाया
मिलता जो हाथ से लिक्खा कोई भी पर्चा
मैं दिल से लगा लेता मगर हो नहीं पाया
करने को प्यार उमड़ रहा सीने में मेरे
अहसास उसको इसका कभी हो नहीं पाया
जज़्बात मरते दम भी आँखों में बसे हैं
आँखों का नूर आँखें मिलाने नहीं आया
कविता कोश
Mai Rotha Tu Rothi Fir Mnayga Koun
मैं रूठा तुम भी रूठ गए फिर मनाएगा कौन
आज दरार है कल खाई होगी फिर भरेगा कौन
मैं चुप तुम भी चुप इस चुप्पी को फिर तोडे़गा कौन
हर छोटी मोटी बात को लगा लोगे दिल से
तो रिश्ता फिर निभाएगा कौन
दुखी मैं भी और तुम भी बिछड़कर
सोचो हाथ फिर बढ़ाएगा कौन
ना मैं राजी ना तुम राजी
फिर माफ़ करने का बड़प्पन दिखाएगा कौन
डूब जाएगा यादों में दिल कभी
तो फिर धैर्य बंधायेगा कौन
एक अहम् मेरे एक तेरे भीतर भी
इस अहम् को फिर हराएगा कौन
ज़िंदगी किसको मिली है सदा के लिए
फिर इन लम्हों में अकेला रह जाएगा कौन
मूंद ली दोनों में से गर किसी दिन एक ने भी आँखें
तो कल इस बात पर फिर पछतायेगा कौन
कविता कोश
Tera Intzaar Aaj Bhi Hai
तुमसे हुई पहली मुलाकात याद हैचलाया था जो कातील नजरों से दिल पे तीर वो घाव के निशा दिल पे आज भी है हालाँकि फिर से एक मिलन की जरूरत तूजसे आज भी है धड़काया तुमने कभी दिल को मेरे अपनी मदहोस अदाओ से उसी दिल को तेरे लौट के आने की उम्मीद आज भी हैहालाँकि उसी धड़कनो पे लिखा तेरा नाम आज भी है भर के बाहो मे मुझे छुआ था कभी जो तुमने प्यार से होठो को मेरे इन गालो पे तेरे लबो के निशा आज भी है हालाँकि मेरे लबो को फिर एक बार तेरे होंठों कि प्यास आज भी हैतुझे मुझसे मोहब्बत थी या नहीं इस बात कि उलझन दिल मे आज भी है हालाँकि मुझे तुमसे मोहब्बत कल से भी बेहद ज्यादा आज भी हैचाहे कितने भी तूफा क्यों ना आ के चल बसे सीने पे मेरे पर दिल मे तेरे कदमों के निशा आज भी है हालाँकि मुझे उसी कदमों की जरूरत फिर से एक बार आज भी हैतू मुझे चाहे या भूल जाएँ पर तू दिल की चाहत आज भी हे चाहे कितना भी जमाना खीलाफ क्यों ना हो मेरे हालाँकि मुझे तेरी जरूरत आज भी हैचाह के भी तुझे हम भूल ना पाएँगे तेरीयादों मे रो रो के एक दिन मर जाएँगे खोने को तो क्या कुछ नहीं खोया इन आँखों ने पर इन आँखों में जिंदा तेरा चेहरा आज भी हे हालाँकि उसी आंखों को इंतजार तेरा आज भी है कविता कोश

Mujhe Gale Se Lgalo Bhut Udas Hoon Mai
१: मुझे गले से लगा लो बहुत उदास हूँ मै
गम-ऐ -जहाँ से से छुपा लो बहुत उदास हूँ मै
नज़र में तीर से चुभते अब नज़रो से
मै थक गई सभी टूटते शहारो से
अब और बोझ ना डालो बहुत उदास हूँ मै
२: बहुत सही गम -ऐ -दुनिया मगर मगर उदास न हो
करीब है शब-ऐ -गम की सहर उदास न हो
सितम के हाथ की तलवारटूट जाए गी
ये ऊँच नीच की दीवार टूट जाए गी
तुझे कसम है मेरी हमसफ़र उदास ना हो
३: ना जाने कब ये तरीका ये तौर बदले गा
सितम का गम का मुसीबत का दौर बदले गा
मुझे जहाँ से उठा लो बहुत उदास हूँ मैं
कविता कोश

Tum Ko Dekha To Khayal Aaya
तुमको देखा तो ये ख़याल आया
ज़िन्दगी धूप तुम घना साया
आज फ़िर दिल ने इक तमन्ना की
आज फ़िर दिल को हमने समझाया
तुम चले जाओगेतो सोचेंगे
हमने क्या खोया हमने क्या पाया
हम जिसे गुनगुना नहीं सकते
वक़्त ने ऐसा गीत क्यू गाया
तुमको देखा तो ये ख़याल आया
कविता कोश
Hans Ke Bol Diya Karo
कुछ हँस के बोल दिया करो
कुछ हँस के टाल दिया करो
यूँ तो बहुत परेशानियां है
तुमको भी मुझको भी
मगर कुछ फैंसले
वक्त पे डाल दिया करो
न जाने कल कोई
हंसाने वाला मिले न मिले
इसलिये आज ही
हसरत निकाल लिया करो
कविता कोश
Hosh Me Aana Bhool Gae
देख के तुमको होश में आना भूल गये
याद रहे तुम ओर जमाना भूल गये
जब सामने तुम आ जाते हो
क्या जानिये क्या हो जाता है
कुछ मिल जाता हैकुछ खो जाता है
क्या जानिये क्या हो जाता है
कविता कोश
Zindagi Ka Har Khwab Pura Nahi Hota
जिंदगी का हर ख्वाब पूरा नहीं होता
होता अगर तो शख्स अधूरा नहीं होता
ख्वाहिशों की प्यास कभी बुझ नहीं पाती
कभी रेतों में समंदर का बसेरा नहीं होता
आंखों में जल रही है जबसे तेरी शमा
मेरे रूह की गलियों में अंधेरा नहीं होता
अश्कों से भीगो देता है हर रात जमीं को
आसमा रोता ही रहता जो सबेरा नहीं होता
कविता कोश
Ladki Nahi Pri Hai Woh
पूरी दुनिया जब बुरा-भला कह रही थी मुझे
तो कहा था उसने मुझे
जब दुनिया ने तोड़-मरोड़ कर रख दिया था मुझे
तो उसने सहारा देकर फिर से
आगे बढ़ना सिखाया था मुझे
न जाने क्या देखा था उस पगली ने मुझमें
जब परछाई ने भी साथ छोड़ दिया था मेरा
वो मेरे साथ पल-पल खड़ी थी न जाने क्यों
मैं पूरी दुनिया से अलग लगा था उसे
जब सबकुछ हार गया था मैं
तो वो जीत बनकर साथ खड़ी थी मेरे
और देखते-देखते मेरे पूरे अस्तित्व में हीं समा गई वो
मैं उसका बन गया था और मेरी बन गई थी वो
मुझे प्यार करते-करते खुद प्यार बन गई थी वो
तभी तो कहता हूँ लड़की नहीं परी है वो
अब उसे बहुत प्यार करता हूँ मैं
वो जान है मेरी ये इकरार करता हूँ मैं
तभी तो कहता हूँ लड़की नहीं परी है वो
कविता कोश

Ye Manzar Kyu Hai Kavita Kosh
आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंज़र क्यूँ है
ज़ख़्म हर सर पे हर इक हाथ में पत्थर क्यूँ है
जब हक़ीक़त है के हर ज़र्रे में तू रहता है
फिर ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मंदिर क्यूँ है
अपना अंजाम तो मालूम है सब को फिर भी
अपनी नज़रों में हर इन्सान सिकंदर क्यूँ है
ज़िन्दगी जीने के क़ाबिल ही नहीं अब
वर्ना हर आँख में अश्कों का समंदर क्यूँ है
आँख से आँख मिला बात बनाता क्यूँ है
तू अगर मुझसे ख़फ़ा है तो छुपाता क्यूँ है
ग़ैर लगता है न अपनों की तरह मिलता है
तू ज़माने की तरह मुझको सताता क्यूँ है
वक़्त के साथ ख़यालात बदल जाते हैं
ये हक़ीक़त है मगर मुझको सुनाता क्यूँ है
एक मुद्दत से जहां काफ़िले गुज़रे ही नहीं
ऐसी राहों पे चराग़ों को जलाता क्यूँ है
कविता कोश
Ab Verano Me Kavita Kosh
रेंग रहे हैं साये अब वीराने में
धूप उतर आई कैसे तहख़ाने में
जाने कब तक गहराई में डूबूँगा
तैर रहा है अक्स कोई पैमाने में
उस मोती को दरिया में फेंक आया हूँ
मैं ने सब कुछ खोया जिसको पाने में
हम प्यासे हैं ख़ुद अपनी कोताही से
देर लगाई हम ने हाथ बढ़ाने में
क्या अपना हक़ है हमको मालूम नहीं
उम्र गुज़ारी हम ने फ़र्ज़ निभाने में
वो मुझ को आवारा कहकर हँसते हैं
मैं भटका हूँ जिनको राह पे लाने में
कब समझेगा मेरे दिल का चारागर
वक़्त लगेगा ज़ख्मों को भर जाने में
हँस कर कोई ज़ह्र नहीं पीता आलम
किस को अच्छा लगता है मर जाने में
कविता कोश
Ab Kisi Ka Koi Kavita Kosh
हुस्न जब इश्क़ से मन्सूब नहीं होता है
कोई तालिब कोई मतलूब नहीं होता है
अब तो पहली सी वह तहज़ीब की क़दरें न रहीं
अब किसी से कोई मरऊब नहीं होता है
अब गरज़ चारों तरफ पाँव पसारे है खड़ी
अब किसी का कोई महबूब नहीं होता है
कितने ईसा हैं मगर अम्न-व-मुहब्बत के लिये
अब कहीं भी कोई मस्लूब नहीं होता है
पहले खा लेता है वह दिल से लड़ाई में शिकस्त
वरना यूँ ही कोई मजज़ूब नहीं होता है
कविता कोश
Daman Me Ky Kuch Hai Kavita Kosh
सुनी सुनाई बात नहीं है अपने ऊपर बीती है
फूल निकलते है शोलों से चाहत आग लगाए तो
झूठ है सब तारीख़ हमेशा अपने को दोहराती है
अच्छा मेरा ख्व़ाब-ए-जवानी थोड़ा सा दोहराए तो
देर लगी आने में तुमको शुक्र है फिर भी आये तो
आस ने दिल का साथ न छोड़ा वैसे हम घबराए तो
शफ़क़ धनुक महताब घटाएँ तारे नग़मे बिजली फूल
उस दामन में क्या कुछ है वो दामन हाथ में आए तो
कविता कोश
Wah Re Jamane Teri Had Ho Gayi
कविता माँ पर माँ पर हिंदी कविता
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई
बीवी के आगे माँ रद्द हो गई
बड़ी मेहनत से जिसने पाला
आज वो मोहताज हो गई
और कल की छोकरी
तेरी सरताज हो गई
बीवी हमदर्द और माँ सरदर्द हो गई
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई
पेट पर सुलाने वाली
पैरों में सो रही
बीवी के लिए लिम्का
माँ पानी को रो रही
सुनता नहीं कोई वो आवाज देते सो गई
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई
माँ मॉजती बर्तनवो सजती संवरती है
अभी निपटी ना बुढ़िया तू उस पर बरसती है
अरे दुनिया को आई मौततेरी कहाँ गुम हो गई
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई
अरे जिसकी कोख में पला
अब उसकी छाया बुरी लगती
बैठ होण्डा पे महबूबा
कन्धे पर हाथ जो रखती
वो यादें अतीत की
वो मोहब्बतें माँ की सब रद्द हो गई
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई
बेबस हुई माँ अब
दिए टुकड़ो पर पलती है
अतीत को याद कर
तेरा प्यार पाने को मचलती है
मुसीबत जिसने उठाई वो खुद मुसीबत हो गई
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई
___ याद रखना ________
मां तो जन्नत का फूल है
प्यार करना उसका उसूल है
दुनिया की मोह्ब्बत फिजूल है
मां की हर दुआ कबूल है
मां को नाराज करना इंसान तेरी भूल है
मां के कदमो की मिट्टी जन्नत की धूल है
कविता कोश

Wo Mila Nahi Kavita Kosh
वो नही मिला तो मलाल क्या
जो गुज़र गया सो गुज़र गया
उसे याद करके ना दिल दुखा
जो गुज़र गया सो गुज़र गया
ना गिला किया ना ख़फ़ा हुए
युँ ही रास्ते में जुदा हुए
ना तू बेवफ़ा ना मैं बेवफ़ा
जो गुज़र गया सो गुज़र गया
तुझे एतबार-ओ-यकीं नहीं
नहीं दुनिया इतनी बुरी नहीं
ना मलाल कर मेरे साथ आ
जो गुज़र गया सो गुज़र गया
वो वफ़ाएँ थीं के जफ़ाएँ थीं
ये ना सोच किस की ख़ताएँ थीं
वो तेरा हैं उसको गले लगा
जो गुज़र गया सो गुज़र गया
कविता कोश

Kavita Kosh Hindi Language
तू शर्मीली सिमटी सीहै शोख़ तितली सी तू
रेशम की नरमी सीजाड़ो की गर्मी सी तू
रातो की काजल सीतारों के आँचल सी तू
तू बादल के बालो सीदिन के उजालो सी तू
दिलकश खयालो सीरंगी ख्वाबो सी तू
तेरे सवालो सीमेरे जवाबो सी तू
ओस में जैसे नहाईंलबो पे खिली है मुस्कान
तू हैं फ़रिश्तों के जैसीरूह की है जैसे तू जान
तुझ को जो पा जाऊंहोश में ना मैं आऊ
तू झिलमिल बहारो सीरिमझिम फ़ुहारों सी तू
अनजाने यादो सीपहचाने वादो सी तू
वन की गुफ़ाओं सीसातो शमाओं सी तू
तू शर्मीली सिमटी सीहै शोख़ तितली सी तू
रेशम की नरमी सीजाड़ो की गर्मी सी तू
कविता कोश

Hindi Prem Kavita
वो मुझे मेहंदी लगे हाथ दिखाकर रोयी
मैं किसी और की हूँबस इतना बता कर रोयीं
शायद उम्र भर की जुदाई का ख्याल आया था उसे
वो मुझे पास अपने बिठाकर रोयीं
दुःख का एहसास दिला कर रोयीं
कभी कहती थी मैं न जी पाऊँगी बिन तुम्हारे
और आज ये बात दोहरा कर रोयीं
मुझ से ज्यादा बिछुड़ने का गम था उसे
वक्त-ए-रुक्शांतवो मुझे सीने से लगा कर रोयीं
मैं बेकसूर हूँ कुदरत का फैसला हो ये
लिपट कर मुझसे बस वो इतना बता कर रोयीं
मुझ पर दुःख का पहाड़ एक और टुटा
जब वो मेरे सामने मेरे ख़त जलाकर रोयीं
मेरी नफरत और अदावत पिघल गयी एक पल में
वो बेवफा है तो क्यों मुझे रुलाकर रोयीं ?
सब गिले-शिकवे मेरे एक पल में बदल गए
झील सी आँखों में जब आंसू सजाकर रोयीं
कैसे उसकी मोहब्बत पर शक करे ये दोस्तों
भरी महफ़िल में वो मुझे गले लगा कर रोयीं
कविता कोश

Kavita Kosh
रिश्ते बस रिश्ते होते हैं
कुछ इक पल के कुछ दो पल के
रिश्ते बस रिश्ते होते हैं
कुछ परों से हल्के होते हैं
बरसों के तले चलते चलते
भारी भरकम हो जाते हैं
कुछ भारी भरकम बर्फ़ के से
बर्सों के तले गलते गलते
हलके फ़ुल्के हो जाते हैं
रिश्ते बस रिश्ते होते हैं
नाम होते हैं कुछ रिश्तों के
कुछ रिश्ते नाम के होते हैं
रिश्ता वो अगर मर भी जाए तो
बस नाम से जीना होता है
बस नाम से जीना होता है
रिश्ते बस रिश्ते होते हैं
कविता कोश
Hindi Ghazal Kosh
वो दिल ही क्या तेरे मिलने की जो दुआ न करे
मैं तुझको भूल के ज़िंदा रहूँ ख़ुदा न करे
रहेगा साथ तेरा प्यार ज़िन्दगी बनकर
ये और बात मेरी ज़िन्दगी वफ़ा न करे
ये ठीक है नहीं मरता कोई जुदाई में
ख़ुदा किसी को किसी से मगर जुदा न करे
सुना है उसको मोहब्बत दुआएँ देती है
जो दिल पे चोट तो खाये मगर गिला न करे
ज़माना देख चुका है परख चुका है उसे
'क़तील' जान से जाये पर इल्तिजा न करे
कविता कोश
Kavita Kosh Ghazal
कोई फ़रियाद तेरे दिल में दबी हो जैसे
तूने आँखों से कोई बात कही हो जैसे
जागते जागते इक उम्र कटी हो जैसे
जान बाकी है मगर साँस रूकी हो जैसे
जानता हूँ आपको सहारे की ज़रूरत नहीं
मैं तो सिर्फ़ साथ देने आया हूँ
हर मुलाक़ात पे महसूस यही होता है
मुझसे कुछ तेरी नज़र पूछ रही हो जैसे
राह चलते हुए अक्सर ये गुमां होता है
वो नज़र छुप के मुझे देख रही हो जैसे
एक लम्हे में सिमट आया है सदियों का सफ़र
ज़िंदगी तेज़ बहुत तेज़ चली हो जैसे
इस तरह पहरों तुझे सोचता रहता हूँ मैं
मेरी हर साँस तेरे नाम लिखी हो जैसे
कविता कोश
Kavita Kosh In Hindi
आँखें ताज़ा मंज़रों में खो तो जाएंगी मगर
दिल पुराने मौसमों को ढूंढ़ता रह जायेगा
सुनते हैं के मिल जाती है हर चीज़ दुआ से
इक रोज़ तुम्हें माँग के देखेंगे ख़ुदा से
दुनिया भी मिली है ग़म-ए-दुनिया भी मिला है
वो क्यूँ नहीं मिलता जिसे माँगा था ख़ुदा से
ऐ दिल तू उन्हें देख के कुछ ऐसे तड़पना
आ जाये हँसी उनको जो बैठे हैं ख़फ़ा से
जब कुछ ना मिला हाथ दुआओं को उठा कर
फिर हाथ उठाने ही पड़े हमको दुआ से
आईने में वो अपनी अदा देख रहे हैं
मर जाए की जी जाए कोई उनकी बला से
तुम सामने बैठे हो तो है कैफ़ की बारिश
वो दिन भी थे जब आग बरसती थी घटा से
कविता कोश