तन्हाई की दीवारो पे घुटन का पर्दा झूल रहा है...
बेबसी की छत के नीचे,कोई किसी को भूल रहा है
कुछ कहानियाँ अक्सर अधूरी रह जाती है,
कभी पन्ने कम प़ड़ जाते है तो कभी स्याही सूख जाती है
मेरे दर्द से तो पत्थर तक पिघल जाये,
बस एक वो है जो ये समझ नहीं पाई
शाम होते ही तेरे प्यार की पागल खुशबु
नींद आँखों से, सुकून दिल से चुरा लेती है