झूम जाते हैं शायरी के लफ्ज़ बहार के पत्तों की तरह
जब शुरू होता है बयां ए हुस्न महबूब का मेरे
दुनिया में तेरा हुस्न मेरी जां सलामत रहे
सदियों तलक जमीं पे तेरी कयामत रहे
गजब का जुल्म ढाया खुदा ने हम दोनों के उपर
मुझे भरपुर इस्क दे कर तुम्हें बेइन्तहा हुस्न दे कर
तुम्हारा हुस्न आराइश.तुम्हारी सादगी जेवर
तुम्हें कोई जरूरत ही नहीं बनने-संवरने की