Dhoka Shayari
es kadar dhokha
मैंने खाया है चिरागों से इस कदर धोखा,
मै जल रहा हूँ सालों से मगर रौशनी नहीं होती
dhokha diya tha jab tune mujhe
धोखा दिया था जब तूने मुझे.
जिंदगी से मैं नाराज था,
सोचा कि दिल से तुझे निकाल दूं.
मगर कंबख्त दिल भी तेरे पास था
dhokha hi de dete
कुछ लोग इतने गरीब होते है की,
देने के लिए कुछ नहीं होता तो धोखा दे देते है
kaise dhokha kha baithe
अनजाने में यूँ ही हम दिल गँवा बैठे,
इस प्यार में कैसे धोखा खा बैठे,
उनसे क्या गिला करें.. भूल तो हमारी थी
जो बिना दिलवालों से ही दिल लगा बैठे
mujhe dhoka diya
तकलीफ ये नही की किस्मत ने मुझे धोखा दिया,
मेरा यकीन तुम पर था किस्मत पर नही