Dhoka Shayari
dhoka deti hai
धोखा देती है अक्सर मासूम चेहरे की चमक,
हर काँच के टुकड़े को हीरा नहीं कहते
janta tha wo dhoka
जानता था की वो धोखा देगी एक दिन पर चुप रहा क्यूंकि उसके धोखे में जी सकता हूँ पर उसके बिना नहीं
dhoka bhi
धोखा भी बादाम की तरह है
जितना खाओगे उतनी अक्ल आती है
dhokha khane lge hai log
इश्क में इसलिए भी धोखा खानें लगें हैं लोग
दिल की जगह जिस्म को चाहनें लगे हैं लोग