तकदीर को कुछ इस तरह अपनाया है मैंने
जी नहीं थी तकदीर में उसे बेपनाह चाहा हमने
मैं मुसाफ़िर हूँ ख़तायें भी हुई होंगी मुझसे !
तुम तराज़ू में मग़र मेरे पाँव के छाले रखना !!
जरा देखो तो ये दरवाजे पे दस्तक किसने दी-अगर इश्क हो तो कहना अब दिल यहा नहीं रहता !!
पत्थर सा जिगर चाहिए ,साहिबा
ये इश्क है - - -
टूटना है, और टूटते ही जाना है ।