उसे मेरी शायरी पसंद आई क्योंकि इनमे दर्द था, न जाने मैं क्यों पसंद नहीं आया मुझमे तो उससे ज्यादा दर्द था ।
शायरी का बादशाह हुं और कलम मेरी रानी, अल्फाज़ मेरे गुलाम है, बाकी रब की महेरबानी ।
अपनी फोटो पे शायरी लिख के पोस्ट करने वाले वही लोग होते हैं. जो स्कूल में निशानी लगाने के लिए पेन की ढक्कन चबा जाते थे.. ।
इश्क भी जरुरी है ग़ालिब शायरी के लिये.... अगर कलम लिखती तो दफ्तर का बाबू शायर होता ।
जनाब ये शायरी की दुनिया है अगर अर्थ पे गये तो अनर्थ हो जाऐगा.??