जुबाँ से चुप तो निगाहों से बोलता क्यूँ है
मेरे वजूद को इतना फिर टटोलता क्यूँ है
मोहब्बत आप ही देती है एक नशा गहरा
खामोश हसरतों में तू इसे घोलता क्यूँ है
छू के जब से गये आप हैं इस दरिया को
ये पूरा पानी हवा से भी यूँ खौलता क्यूँ है
हमारे बीच में क्या है रहने भी दे इसको
दिल के राज़ ज़माने में तू खोलता क्यूँ है
अगर यक़ीन है तुम्हे मेरी मोहब्बत पर
प्यार को तराज़ू पर "मन" तोलता क्यूँ है