वहाँ सन्नाटे की तरह छा जाऊं
मेरे आने का जिकर भी न करू,
बस तुम से मिलने का सन्देश छोड़ आऊं,
वहाँ सोंधी-सोंधी खुशबू छोड़,
कब तुम्हारे जहन में एक पहेली सी बन जाऊं,
बिन कुछ कहे,
कब तुम्हारे आशियां पे कब्जा कर जाऊं
तुमसे इस गुसताखी की इज्जाजत भी न लाऊं
तुम्हारे इनकार करने पर भी,
बस !
तुमसे हाँ की उम्मीद लगाए जाऊं.......