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Harivansh Rai Bachchan Poems

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 अँधेरे का दीपक

है अँधेरी रात पर
दीवा जलाना कब मना है?

कल्पना के हाथ से कम
नीय जो मंदिर बना था,
भावना के हाथ ने जिसमें
वितानों को तना था,

स्वप्न ने अपने करों से 
था जिसे रुचि से सँवारा 

स्वर्ग  के दुष्प्राप्य रंगों 
से, रसों से जो सना था,

ढह गया वह तो जुटाकर 
एक अपनी शांति की
ईंट, पत्थर, कंकड़ों को
कुटिया बनाना कब मना है?

Inspirational Harivansh Rai Bachchan Poems

Inspirational Harivansh Rai Bachchan Poems

जिन अधरों को छुए, 
बना दे मस्त उन्हें मेरी हाला; 
जिस कर को छू दे, 
कर दे विक्षिप्त उसे मेरा प्याला; 
आँख चार हों जिसकी मेरे 
साकी से, दीवाना हो; 
पागल बनकर नाचे वह 
जो आए मेरी मधुशाला । 

हर जिह्वा पर देखी जाएगी 
मेरी मादक हाला; 
हर कर में देखा जाएगा 
मेरे साकी का प्याला; 
हर घर में चर्चा अब होगी 
मेरे मधुविक्रेता की; 
हर आँगन में गमक उठेगी 
मेरी सुरभित मधुशाला । 

मेरी हाला में सबने 
पाई अपनी-अपनी हाला, 
मेरे प्याले में सबने 
पाया अपना-अपना प्याला, 
मेरे साकी में सबने 
अपना प्यारा साकी देखा;
जिसकी जैसी रुचि थी 
उसने वैसी देखी मधुशाला ।

Madhushala Poem in Hindi

Madhushala Poem in Hindi

जो बीत गई सो बात गई। 
जीवन में एक सितारा था, 
माना वह बेहद प्यारा था 
वह डूब गया तो डूब गया, 
अम्बर के आनन को देखो। 
कितने इसके तारे टूटे, 
कितने इसके प्यारे छूटे 
जो छूट गए फिर कहाँ मिले। 
पर बोलो टूटे तारों पर, 
कब अम्बर शोक मनाता है । 
जो बीत गई सो बात गई 
हरिवंश राय बच्चन

Positive Harivansh Rai Bachchan Poems

Positive Harivansh Rai Bachchan Poems

प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो ।

मैं जगत के ताप से डरता नहीं अब,
मैं समय के शाप से डरता नहीं अब,
आज कुंतल छाँह मुझपर तुम किए हो
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो ।

रात मेरी, रात का श्रृंगार मेरा,
आज आधे विश्व से अभिसार मेरा,
तुम मुझे अधिकार अधरों पर दिए हो
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो।

वह सुरा के रूप से मोहे भला क्या,
वह सुधा के स्वाद से जा‌ए छला क्या,
जो तुम्हारे होंठ का मधु-विष पिए हो
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो।

मृत-सजीवन था तुम्हारा तो परस ही,
पा गया मैं बाहु का बंधन सरस भी,
मैं अमर अब, मत कहो केवल जिए हो
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो।

Harivansh Rai Bachchan Ki Kavita

Harivansh Rai Bachchan Ki Kavita

वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी,
माँग मत, माँग मत, माँग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।

तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।

यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु स्वेद रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।

Agneepath Poem in Hindi

Agneepath Poem in Hindi